रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी के घर एंटीलिया के बाहर संदिग्ध कार मिलने के केस में बड़ा मोड़ आ गया है। अधिकारियों को शुक्रवार को कलवा क्रीक पर एक शव मिला है। यह उस स्कॉर्पियो के मालिक का शव है, जो एंटीलिया के बाहर संदिग्ध हालात में मिली थी। अधिकारियों ने बताया कि शव मनसुख हीरन का है। वह ठाणे के व्यापारी हैं और क्लासिक मोटर्स की फ्रेंचाइजी चलाते हैं। ठाणे के DCP ने बताया कि उन्होंने कलवा ब्रिज से कूदकर खुदकुशी की है।
क्राइम ब्रांच के अधिकारी और मनसुख पर फडणवीस ने उठाया सवाल
मनसुख की लाश मिलने से करीब एक घंटे पहले महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने ये मुद्दा विधानसभा में उठाया। फडणवीस ने कहा कि जब एंटीलिया के बाहर गाड़ी मिली तो वहां जो अधिकारी सबसे पहले पहुंचा, वो सचिन वझे थे। मुंबई क्राइम ब्रांच के बाकी अधिकारी सचिन वझे के बाद पहुंचे थे। गाड़ी के मालिक के नंबर की जब सीडीआर निकाली गई तो पिछले साल 5 जून और 15 जुलाई को सचिन वझे से बातचीत की बात सामने आई। ये दोनों एक-दूसरे के संपर्क में थे। अब गाड़ी मालिक कह रहा है कि गाड़ी चोरी हो गई थी और सचिन वझे का पहले वहां पहुंचना संयोग भी हो सकता है, लेकिन सवाल खड़े करता है।
पहले भी विवादों में रहे हैं क्राइम ब्रांच के अफसर सचिन वझे
मुंबई में ख्वाजा यूनुस की पुलिस हिरासत में हुई मौत के मामले में सचिन वझे ने साल 2008 में इस्तीफा दे दिया था। वझे को यूनुस की मौत के मामले में साल 2004 में गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तारी के बाद वे सस्पेंड कर दिए गए थे। वझे पर यूनुस की हिरासत में मौत से जुड़े तथ्य छिपाने का आरोप था। हालांकि, उद्धव सरकार बनने के बाद वझे को करीब 12 साल बाद 7 जून 2020 को फिर बहाल कर दिया गया। उन्हें मुंबई पुलिस के क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट (CIU) का हेड बनाया गया। साल 1990 बैच के पुलिस अधिकारी वझे अपने कार्यकाल के दौरान लगभग 63 मुठभेड़ का हिस्सा रहे। सचिन वझे वही शख्स हैं, जिन्होंने अर्नब गोस्वामी को उनके घर से अरेस्ट किया था।
अंबानी के घर के बाहर मिली थी विस्फोटकों से लदी SUV
मुकेश अंबानी के घर एंटीलिया से करीब 200 मीटर दूर एक संदिग्ध SUV से जिलेटिन की 20 छड़ें मिलीं थीं। SUV पर फर्जी नंबर प्लेट लगी थी। CCTV फुटेज की जांच में सामने आया कि एंटीलिया के बाहर कार 24 फरवरी की रात करीब 1 बजे पार्क की गई थी। इससे पहले ये कार 12:30 बजे रात को हाजी अली जंक्शन पहुंची थी और यहां करीब 10 मिनट तक खड़ी रही। बरामद कार मुंबई के विक्रोली इलाके से चुराई गई थी। इसका चेसिस नंबर बिगाड़ दिया गया है, लेकिन पुलिस ने कार के असली मालिक की पहचान कर ली थी।
क्राइम ब्रांच के एक अधिकारी के मुताबिक, कार के मालिक मनसुख हिरेन ने बताया था कि 17 फरवरी की शाम को वे ठाणे से घर जा रहे थे। रास्ते में गाड़ी बंद हो गई। उन्हें जल्दी थी, इसलिए गाड़ी ऐरोली ब्रिज के पास सड़क के किनारे खड़ी कर दी। अगले दिन वे कार लेने गए तो वह नहीं मिली। उन्होंने इसकी शिकायत पुलिस से भी की थी।
नई दिल्ली. 'ज़िंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मकाम, वो फिर नहीं आते.' एक पुरानी हिंदी फिल्म के गाने की यह लाइन एक बार फिर तरोताजा हो गई है. ललितपुर (Lalitpur) के रहने वाले विष्णु के जीवन को उकेरने के लिए इस गाने की यह एक ही लाइन काफी है. आगरा (Agra) की सेंट्रल जेल (Central Jail) में बंद विष्णु 20 साल से उस घिनौने अपराध की सजा काट रहा है जो उसने किया ही नहीं, लेकिन जब तक विष्णु की बेगुनाही साबित होती तब तक वो अपना सब कुछ लुटा चुका था. एक-एक कर उसके मां-बाप चल बसे. दो बड़े शादीशुदा भाई भी यह दुनिया छोड़ गए.
आज जब इलाहबाद हाईकोर्ट ने विष्णु को रिहा करने का आदेश जारी किया है तो एक सवाल जरूर उठ रहा है कि इससे पहले इस केस में क्या हो रहा था. विष्णु बेहद गरीब परिवार से था. इस केस को लड़ने के लिए उसके परिवार के पास न तो पैसे थे और ना ही कोई अच्छा वकील. लेकिन सेंट्रल जेल आगरा आने के बाद यहां उसे जेल प्रशासन की मदद से विधिक सेवा समिति का साथ मिला. समिति के वकील ने हाईकोर्ट में विष्णु की ओर से याचिका दाखिल की. सुनवाई चली और एक लम्बी बहस के बाद विष्णु को रिहा कर दिया गया. हालांकि खबर लिखे जाने तक जेल में विष्णु की रिहाई का परवाना नहीं पहुंचा है
विष्णु का एक भाई महादेव उसे जेल में मिलने आता है, लेकिन कोरोना के चलते उससे भी मुलाकात नहीं हो पा रही है. लेकिन महादेव के जेल आने पर विष्णु हमेशा ठिठक जाता है. क्योंकि चार अपनों की मौत की खबर भी महादेव ही लाया था. सबसे पहले 2013 में उसके पिता की मौत हो गई. एक साल बाद ही मां भी चल बसी. उसके बाद उसके दो बड़े भाई भी यह दुनिया छोड़कर चले गए. विष्णु पांच भाइयों में तीसरे नंबर का है.
आगरा के रहने वाले सोशल और आरटीआई एक्टिविस्ट नरेश पारस ने इस संबंध में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को एक पत्र लिखा है. नरेश पारस का कहना है कि विष्णु के मामले में पुलिस ने लचर कार्रवाई की. सही तरीके से जांच नहीं की गई, जिसके चलते विष्णु को अपनी जवानी के 20 साल जेल में बिताने पड़े. जब विष्णु जेल में आया था तो उसकी उम्र 25 साल थी. आज वो 45 साल का होकर जेल से बाहर जा रहा है. दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई करने के साथ ही विष्णु को मुआवजा दिया जाए. मुआवजे की रकम पुलिसकर्मियों के वेतन से काटी जाए.
जेल में रहने के दौरान विष्णु मेस में दूसरे बंदियों के लिए खाना बनाता है. इतने साल में वो एक कुशल रसोइया बन चुका है. साथी बंदियों का कहना है कि काम का वक्त हो या खाली बैठा हो, विष्णु सिर्फ एक ही गाना गाता है, ...जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह-शाम. विष्णु का कहना है कि इसी गाने में ज़िदगी का फलसफा छिपा हुआ है.